परम् पूज्यनीय पंडित श्री काशीनाथ मिश्र जी द्वारा कलियुग से बचाव के तीन उपाय बताए जा रहे है। जिसमे से अत्यंत महत्वपूर्ण है –“” श्रीमद्भागवत“” का नित्य पठन। पर एक प्रश्न ये भी है की सभी ग्रंथो में से श्रीमद्भागवत ही क्यों पढ़े?
इसका प्रमाण हमे श्रीमद भागवत महात्म्य से मिलता है। जो की स्कंध पुराण के विष्णु खंड के मार्गशीर्ष महात्म्य के अध्याय 16 से लिया गया है। जिसमे स्वयं भगवान नारायण ब्रह्मा जी से श्रीमद्भागवत जी के नित्य पठन और पूजन करने के प्रभाव के बारे में बता रहे है ।
भगवान नारायण 2 श्लोक में इसकी महिमा बताते हुए कहते है की –
नित्यं भागवतं यस्तु पुराणं पठते नरः ।
प्रत्यक्षरं भवेत्तस्य कपिलादानजं फलम् ।।२।।
- श्रीमद् भागवत महापुराण (माहात्म्य)
अर्थ:
जो मनुष्य प्रतिदिन भागवतपुराण का पाठ करता है, उसे एक-एक अक्षर के उच्चारण के साथ कपिला गौ दान देने का पुण्य होता है।
वही 4 श्लोक में वर्णन आता है –
यः पठेत् प्रयतो नित्यं श्लोकं भागवतं सुत ।
अष्टादशपुराणानां फलमाप्नोति मानवः ।।४।।
- श्रीमद भागवत महापुराण (माहात्म्य) श्लोक 4
अर्थ: जो प्रतिदिन पवित्र चित्त होकर भागवत के एक श्लोक का पाठ करता है, वह मनुष्य अठारह पुराणों के पाठ का फल पा लेता है।
वही 11 वे श्लोक में भगवान कहते है -
श्लोकार्थं श्लोकपादं वा वरं भागवतं गृहे ।
शतशोऽथ सहसैश्च किमन्यैः शास्त्रसंग्रहैः ।।११।।
- श्रीमद भागवत महापुराण (माहात्म्य)
श्लोक 11
अर्थ:
यदि अपने घर पर भागवत का आधा श्लोक या चौथाई श्लोक भी रहे, तो यह बहुत उत्तम बात है, उसे छोड़कर सैकड़ों और हजारों तरह के अन्य ग्रन्थों के संग्रह से भी क्या लाभ है? इससे स्पष्ट होता है की मनुष्यो को नित्य केवल श्रीमद्भागवत महापुराण का पठन करने से सम्पूर्ण ग्रंथो को पढ़ने का फल मिलता है ।
वहीं परम् पूज्यनीय पंडित श्री काशीनाथ मिश्र जी बताते है की जो मानव नित्य श्रीमद्भागवत जी पढ़ता है वो कलियुग के दोषों से मुक्त हो जाता है। इसका प्रमाण भी भगवान नारायण श्रीमद्भागवत महात्म्य में देते है।
भगवान नारायण 5 वे श्लोक में कहते है -
नित्यं मम कथा यत्र तत्र तिष्ठन्ति वैष्णवाः ।
कलिबाह्या नरास्ते वै येऽर्चयन्ति सदा मम ।।५।।
- श्रीमद भागवत महापुराण (माहात्म्य) श्लोक 5
अर्थ:
जहाँ नित्य मेरी कथा होती है, वहाँ विष्णुपार्षद प्रह्लाद आदि विद्यमान रहते हैं। जो मनुष्य सदा मेरे भागवतशास्त्र की पूजा करते हैं, वे कलि के अधिकार से अलग हैं, उन पर कलि का वश नहीं चलता ।
यत्र यत्र भवेत् पुण्यं शास्त्रं भागवतं कलौ ।
तत्र तत्र सदैवाहं भवामि त्रिदशैः सह ।।१५।।
- श्रीमद भागवत महापुराण (माहात्म्य) श्लोक 15
अर्थ:
भगवान कहते हैं
कलियुग में जहाँ-जहाँ पवित्र भागवतशास्त्र रहता है, वहाँ-वहाँ सदा ही मैं देवताओंके साथ उपस्थित रहता हूँ।
श्रीमद्भागवतं पुण्यमायुरारोग्यपुष्टिदम् ।
पठनाच्छ्रवणाद् वापि सर्वपापैः प्रमुच्यते ।।१८।।
- श्रीमद् भागवत महापुराण (माहात्म्य) श्लोक 18
अर्थ: यह पावन पुराण श्रीमद्भागवत महापुराण आयु, आरोग्य और पुष्टिको देनेवाला है; इसका पाठ अथवा श्रवण करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
इससे स्पष्ट होता है श्रीमद्भागवत जी के नित्य पठन से कलियुग के सभी दोषों से मुक्त हो जाते है ।
त्रिसंध्या या त्रिसंध्या धारा के बारे में अधिक जानने के लिए विजिट करें या संपर्क करें -
☎ +91 91425 52324
☎ +91 94387 23047
☎ +91 88951 55245
☎ +91 93200 00020