जब जब भगवान खुद की इच्छा से
धर्म संस्थापना
के लिए धरा अवतरण करते हैं, तब तब उनके आने से पूर्व ही उनके जन्म स्थान, उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन, उनके भक्तों का वर्णन उस समय की धर्म की स्थिति तथा भगवान किस प्रकार
धर्म संस्थापना
करेंगे आदि युग संध्या से लेकर
धर्म संस्थापना
और नवयुग तक का वर्णन भगवान के निर्देश से पूर्व ही लिख दिया जाता है। ताकि मनुष्य समाज धर्म और धारा, सनातन संस्कृति का पालन करके रक्षा प्राप्त कर सके।
जिस प्रकार त्रेता युग में भगवान श्री राम जी के धरा अवतरण से पूर्व ही महर्षि वाल्मीकि जी ने जगत पिता ब्रह्मा जी के निर्देश से, देवर्षि नारद जी के मुखारबिंद से जो उन्होंने भगवान श्री राम जी के पावन चरित्र का गुणगान सुना था, उसका वर्णन 'रामायण ग्रन्थ' में किया।
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी के धरा अवतरण से पूर्व, युग संध्या, धर्म की स्थिति और
धर्म संस्थापना
के विषय में महर्षि वेदव्यास जी ने भगवान श्री गणेश जी के सहयोग से हिमालय में तपस्या करते हुए 'महाभारत ग्रन्थ' की रचना की थी।
ठीक उसी प्रकार कलियुग में दूसरी बार जब भगवान ने नाम संकीर्तन की महिमा, अहिंसा प्रेम और भक्ति को संपूर्ण विश्व में प्रचार करने के लिए चैतन्य रुप में अवतार ग्रहण किया, उसी समय पंचसखा में अन्यतम महापुरूष अच्युतानंद दास, महापुरूष बलराम दास, महापुरूष जगन्नाथ दास, महापुरूष जसवंत दास और महापुरूष शिशु अनंत दास ने आज से 600 वर्ष पूर्व, 15 वीं शताब्दी में पावन उत्कल भूमि (उड़ीसा राज्य) में भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जी के शिष्य के रुप में इस धरती पर आए। और भगवान श्री जगन्नाथ जी के निर्देश से
'भविष्य पुराण ग्रन्थ'
को संशोधित करते हुए '
भविष्य मालिका पुराण ग्रन्थ
' की रचना की। इस क्रम में उन्होंने '185000' ग्रंथों के समूह की रचना ताड़ के पत्तों में की, जिसको उड़िया भाषा में लिखा गया।

इस ग्रन्थ में पंच सखाओं ने
कलियुग के अंत
में धर्म की स्थिति,
भगवान श्री कल्कि जी का धरा अवतरण
,
धर्म संस्थापना
, मनुष्य समाज का उद्धार और अनंत युग तक की भगवान की लीलाओं का वर्णन विस्तार पूर्वक किया।
भविष्य मालिका
में लिखी हुई प्रत्येक बात पत्थर की गाढ़ है और हमेसा सच साबित हुई है। जैसे कि भारत में मुगलों का अत्याचार, अंग्रेजो की गुलामी, स्वतंत्रता संग्राम की घटनाएं और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का वर्णन, भारत देश का टूट कर आजाद होना, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा देश का निर्माण, प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, अज्ञात रोग महामारी आना आदि आदि ये सभी घटनाएं घटित हो चुकी हैं।
और इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से भगवान श्री कल्कि जी के धरा अवतरण, भक्तों का एकत्रीकरण, सुधर्मा महा-महा संघ और 16 मंडल का गठन, खंड प्रलय, अग्नि प्रलय, जल प्रलय, भूकंप, रोग महामारी एवं पारमाणुविक तृतीय विश्व युद्ध से लेकर अनंत युग/ आद्य सतयुग के आगमन तक का संपूर्ण वर्णन किया गया है।
भविष्य मालिका पुराण
के अनुसार सन् 2032 से पूर्व संपूर्ण विश्व में सभी धर्मों और पंथों का पुनर्गठन होकर सारे विश्व में केवल सत्य सनातन धर्म प्रतिष्ठित होगा।
यह ग्रन्थ आने वाले महाविनाश से रक्षा पाने के लिए संपूर्ण विश्व में एक मात्र चेतवानी और एक मात्र संजीवनी है।

पंडित श्री काशीनाथ मिश्र जी के 40 वर्षों से अधिक मालिका के अध्यन एवं अनुमोदन से, आज विश्व में पहली बार '
भविष्य मालिका पुराण ग्रन्थ
' प्रथम खंड को हिंदी सहित समग्र विश्व में, 150 से अधिक देशों में भिन्न भिन्न भाषाओं में प्रतिपादन एवं विमोचन किया जा रहा है। इस ग्रन्थ में आने वाले महाविनाश और परिर्वतन की अधिकतम
भविष्यवाणियों
का शत् प्रतिशत वर्णन किया गया है। ताकि आने वाले महाविनाश से पूर्व मनुष्य समाज को चेतावनी मिल सके और मनुष्य समाज सनातन आर्य वैदिक परंपरा का अनुपालन कर इस महाविनाश से रक्षा प्राप्त कर सके।
पार्ट 2 पढ़ने के लिए क्लिक करें - भविष्य मालिका क्या है? - Part 2