अच्युतानंद दास कौन हैं ?
महापुरुष अच्युतानंद दास जी का जन्म 10 जनवरी 1510 को हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार यह तिथि माघ शुक्ल एकादशी थी। उनका जन्म ओडिशा के कटक ज़िले के तिलकना नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दीनबंधु खुटिया और माता का नाम पद्मावती खुटिया था।
वे एक महान वैष्णव संत, कवि, विद्वान, चैतन्य महाप्रभु (भगवान जगन्नाथ के अवतार) के शिष्य और भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे। वे पंचसखाओं में सबसे छोटे थे। पंचसखा अर्थात ओडिशा में जन्मे पाँच महान संतों में वे सबसे कम आयु के थे।
संत अच्युतानंद जी के पिछले जन्म
भगवान विष्णु द्वारा धर्म की स्थापना में सहायता करने के लिए संत अच्युतानंद जी प्रत्येक युग में जन्म लेते हैं। उनका जन्म केवल एक संत के रूप में नहीं होता, बल्कि वे हर युग में धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश में ईश्वर के सहायक बनते हैं।
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सत्य युग में उन्हें ऋषि कृपाजल के नाम से जाना जाता था।
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त्रेता युग में उनका जन्म नल के रूप में हुआ और वे भगवान राम के साथ रहे।
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द्वापर युग में भगवान कृष्ण के मित्र सुदामा थे।
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वर्तमान युग में, अर्थात् कलियुग में, उन्हें अच्युतानंद दास के नाम से जाना जाता है, जो श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य बन गए।
अच्युतानंद दास के पिता के बारे में
महाराज रुद्र देव के सारथी अच्युतानंद जी के दादा थे, इसलिए उनके पुत्र, अर्थात अच्युतानंद जी के पिता दीनबंधु को महाराज द्वारा 'खुंटिया' की उपाधि दी गई थी।
वे नियमित रूप से भगवान जगन्नाथ की सेवा करते थे और उनके परम भक्त थे। उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराज ने उन्हें पवित्र महाप्रसाद और मासिक वेतन प्रदान करते थे।
अच्युतानंद के माता-पिता पर समाज द्वारा डाला गया आघात
दीनबंधु और पद्मावती की कोई संतान नहीं थी, जिससे वे बहुत दुखी रहते थे। एक दिन पद्मावती जब पुष्करणी झील में स्नान कर रही थीं, तभी वहाँ कुछ महिलाओं ने उनका अपमान किया। उन्होंने ताना मारते हुए कहा कि सुबह-सुबह किसी निःसंतान महिला का चेहरा देखने से उनका पूरा दिन अशुभ हो गया।
अपमानजनक बातें सुनकर पद्मावती को अत्यंत दुख हुआ। वह रोती हुई घर लौटी और चुपचाप अपने कमरे में फर्श पर लेट गई। जब दीनबंधु खुटिया मंदिर से घर लौटे और अपनी पत्नी को इस स्थिति में देखा, तो उन्होंने पूछा कि वह इतनी व्याकुल क्यों है और क्या बात उसे भीतर से दुखी कर रही है।
शुरुआत में पद्मावती ने यह बताने से बचने की कोशिश की कि उसके साथ क्या हुआ था। लेकिन जब दीनबंधु ने बार-बार पूछा और ज़ोर दिया, तो उसने रोते हुए सुबह झील पर उसके साथ हुई सारी बात उन्हें बता दी।
भगवान जगन्नाथ के समक्ष अपना दुख व्यक्त करना
इस घटना ने दीनबंधु को भीतर तक तोड़ दिया। वे गहरे दुःख में आकर महाप्रसाद को फर्श पर फेंक बैठे और रोते हुए भगवान जगन्नाथ को पुकारने लगे। उन्होंने कहा — “प्रभु! मैंने सदैव शुद्ध हृदय से आपकी सेवा की है, फिर भी मुझे यह कष्ट क्यों मिला? मैंने ऐसा क्या अपराध किया कि आपने मुझे संतान से वंचित रखा?
दीनबंधु की पीड़ा इतनी गहरी थी कि वे व्याकुल होकर बोले — “जो ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं, वे हमारी वेदना को भलीभाँति समझ सकते हैं, फिर भी उन्होंने कभी हम पर दया क्यों नहीं दिखाई? लोग हमें अपमानित करते हैं, निःसंतान कहकर ताना मारते हैं। मैं जीवनभर आपकी सेवा में लगा रहा, फिर भी उससे क्या लाभ हुआ?
नीलचक्र (जो श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थित है) की ओर देखते हुए दीनबंधु और उनकी पत्नी पद्मावती ने यह कठोर प्रतिज्ञा की कि जब तक उन्हें संतान प्राप्त नहीं होती, वे न तो महाप्रसाद ग्रहण करेंगे और न ही जल पिएँगे। वे भूखे-प्यासे रहकर रोते हुए उसी अवस्था में सो गए हैं।
संत अच्युतानंद दास का जन्म
उसी रात स्वप्न में भगवान जगन्नाथ स्वयं दीनबंधु के सामने प्रकट हुए और कहा — “मैं तुम्हारी निःस्वार्थ सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ।” प्रभु ने आगे कहा — “इस समय मंगला आरती चल रही है, और तुम्हें तुरंत मंदिर के सामने स्थित अरुण स्तंभ (सूर्य स्तंभ) पर पहुँचना चाहिए।”
दीनबंधु तुरंत उठे और अरुण स्तंभ की ओर दौड़ पड़े। वहाँ पहुँचकर उन्होंने एक अलौकिक दृश्य देखा — मंदिर से दस हज़ार सूर्यों के समान तेज़ किरणें निकल रही थीं। यह अद्भुत प्रकाश देखकर वे पूरी तरह से चकित रह गए। उसी क्षण रत्न सिंहासन की भुजाओं से एक दिव्य बालक प्रकट होकर उनके हाथों में सौंप दिया गया।
दीनबंधु को एक दिव्य बालक का आशीर्वाद देते हुए भगवान जगन्नाथ ने उनसे कहा — “यह बालक असाधारण है। इसकी महिमा से संपूर्ण संसार आलोकित होगा।” भगवान ने उन्हें यह भी निर्देश दिया कि इस बालक का नाम ‘अच्युत’ रखा जाए। यह बालक ‘अयोनिज’ है — अर्थात् वह माँ के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुआ, बल्कि भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद रूप में दीनबंधु को प्रदान किया गया है।
संत अच्युतानंद दास का जीवन
अच्युतानंद जी सनातन गोस्वामी के शिष्य बने और नित्यानंद वैष्णव परंपरा में दीक्षित हो गए। गुरुभक्ति गीता में पंचसखाओं की इस धार्मिक परंपरा और उनके आचार-व्यवहार का विस्तृत रूप से उल्लेख मिलता है।
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यह सारी सामग्री इस भविष्य मालिका की आधिकारिक (Official) वेबसाइट पर प्रकाशित है और कॉपीराइट द्वारा संरक्षित है। यदि आप वेबसाइट की किसी भी सामग्री का इंटरनेट पर उपयोग करना चाहते हैं, तो कृपया भविष्य मालिका ऑफिशियल वेबसाइट का लिंक अवश्य दें।
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“अनंत शिशु येरामानंद बैष्णबा
यशोबंता दास माधवाचार्य बैष्णबा
बलराम दास बिष्णुश्याम दास होई
नित्यानंद बैष्णबा अच्युता अतै।” - गुरुभक्ति गीता, प्रथम खंड
एक बार संत अच्युतानंद जी पंचसखा यशोबंत जी से मिलने अधंगा ज़िले के नंदी गाँव गए। उनके साथ उनके कई अनुयायी भी थे। वहाँ उन्होंने सात दिवसीय रासलीला का आयोजन किया। जब अधंगागढ़ के राजा रघुराम को इस दिव्य आयोजन का समाचार मिला, तो वे स्वयं वहाँ पहुँचे और रासलीला देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।
राजा रघुराम की पुत्री चंपावती, संत अच्युतानंद जी के भक्ति संगीत और रास कीर्तन से इतनी भावविभोर हो गई कि उसने उनसे विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन जब उसने यह बात अपने पिता से कही, तो राजा रघुराम ने चंपावती का यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।
उसने अपने पिता को अपने पिछले जन्म की कहानी सुनाई और बताया कि द्वापर युग (भगवान कृष्ण के युग) में अच्युतानंद ने सुदामा के रूप में जन्म लिया था और वह श्यामा नाम की एक गोपी के रूप में पैदा हुई थी। भगवान कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि कलियुग में वे दोनों पुनर्जन्म लेंगे और एक दूसरे से विवाह करेंगे।
अच्युतानंद दास का विवाह
“बोइले गोपी तुयेमंता कारा
सुदामा अच्युत कलियुगारा
अच्युता स्त्री तू कलियुग रे हेइबू
अच्युता सेविना मोटे लभिबु।" - वर्णिका पुराण
यशोबंत जी ने चंपावती को आशीर्वाद दिया था जब वह अपनी माँ के साथ उनके मठ में आई, की उनका विवाह संत अच्युतानंद जी से होगा। चंपावती ने यह शुभ आशीर्वाद अपने माता-पिता को बताया। यह सुनकर राजा रघुराम और रानी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रेमपूर्वक उनके विवाह को स्वीकृति दे दी।
राजा रघुराम और उनकी पत्नी चंपावती को साथ लेकर यशोबंत जी के मठ में पहुँचे और संत अच्युतानंद जी से निवेदन किया कि वे उनकी पुत्री के विवाह प्रस्ताव को स्वीकार करें। यह सुनकर अच्युतानंद जी आश्चर्यचकित रह गए और भीतर से कुछ असहज अनुभव करने लगे।
उन्होंने तुरंत मार्गदर्शन हेतु भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण किया और गहन ध्यान में लीन हो गए। भगवान श्रीकृष्ण से दिव्य निर्देश प्राप्त करने के पश्चात संत अच्युतानंद जी ने विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। बाद में उनका विवाह चंपावती से हुआ और वे दोनों विवाहोपरांत नेमाला में निवास करने लगे।
संत अच्युतानंद दास की रचनाएँ
ऐसा माना जाता है कि संत अच्युतानंद जी भगवान जगन्नाथ की कमर (कटि) से उत्पन्न हुए थे और उन्हें स्वयं भगवान जगन्नाथ का अवतार माना जाता है। ओडिशा के नेमल में उन्होंने गहन ध्यान करते हुए भगवान की आज्ञा का पालन किया और अपनी दिव्य शक्तियों के माध्यम से एक लाख से अधिक पवित्र ग्रंथों की रचना की।
इन पवित्र ग्रंथों में 36 संहिताएँ, 72 गीताएँ, 27 वंशावलियाँ और 100 'भविष्य मालिका' ग्रंथ शामिल हैं।
भविष्यवाणियों की सटीकता
संत अच्युतानंद दास जी की भविष्यवाणियाँ पृथ्वी पर की गई किसी भी अन्य भविष्यवाणियों की तुलना में कहीं अधिक सटीक और प्रमाणित मानी जाती हैं। वे भविष्य मालिका में स्पष्ट रूप से लिखते हैं —
“अच्युतिर बानी अते पथरारा गारा,
अनाकारीबाकु नहीं शकति कहारा।” - भविष्य मालिका
मालिका शास्त्रों में लिखे शब्द पत्थर की लकीर की तरह होते हैं। वे न तो बदले जा सकते हैं, न मिटाए जा सकते हैं। वे पूर्णतः अपरिवर्तनीय, अचूक, अकाट्य और अपरिहार्य हैं। पूरे ब्रह्मांड में कोई भी शक्ति उन्हें ज़रा भी बदलने में सक्षम नहीं है।
संत अच्युतानंद दास की कुछ भविष्यवाणियाँ
अपने पवित्र ग्रंथ भविष्य मालिका में संत अच्युतानंद दास जी ने कलियुग से लेकर आने वाले सत्ययुग तक की अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है। यह दिव्य ग्रंथ मानवता के कल्याण के लिए लिखा गया था, ताकि इसे पढ़कर भक्तों की सुप्त चेतना जागृत हो, वे सत्य के मार्ग की खोज करें और अंततः भगवान की शरण में प्रवेश करें।
कलियुग का अंत
“माछा मनसा जे करिबे भोजन,
अगतिका जिबे जानि शूनिना।
मोरा भक्तनकु नामानिबे केही,
से मने थीबेटी दरिद्रा होई.
मोरा भक्त पाइबे बहु कषाण,
मोरा चिंताए कटैब” - दशपताल मालिका
उपरोक्त श्लोक में कलियुग के अंत का स्पष्ट वर्णन किया गया है, जिसे संत अच्युतानंद दास जी ने भविष्य मालिका में लिखा है। यह संवाद स्वयं भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी जी के बीच हुआ था।
श्लोक में वर्णन है — “कलियुग में लोग सब कुछ जानने के बावजूद मांस-मछली का सेवन करेंगे और पतन की ओर बढ़ेंगे। मेरे सच्चे भक्तों की कोई नहीं सुनेगा, वे अत्यधिक कष्ट सहते हुए भी मेरे नाम के चिंतन में दिन व्यतीत करेंगे।”
“अगे कृषकी बिनाशा होइबे, तदंते धनिका लोक
राजा सेबयता ता परे बिनशा पदैबा अति मदका"
उपरोक्त श्लोक में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि सबसे पहले किसान नष्ट होंगे, फिर उनके बाद धनी वर्ग का पतन होगा। इसके पश्चात राज-कर्मचारी नष्ट होंगे और अंततः व्यापक स्तर पर मृत्यु का तांडव होगा।
महामारी
“अचिन्हा रोग ब्यापिब संसारे,
वैद्य मने पदिजिबे भ्रमरे।
औषध आदिरु हेबा रसाहिना,
ताहिरु केबे ना मिलिबा गुना।
बसंत बयापिबा सचराचार,
तसंगे कफ, पित्त ख़राब।
अपस्मार, मृग, ग्लुक, कमला,
तसंगे थिबा ज्वरा आदि सारा।
प्रमेहा, बिचारचिका आदि रोगा,
प्राणि बहुता करुथिबे भोगा।” - चौसठि पाताल
उपरोक्त श्लोक में संत अच्युतानंद दास ने भगवान श्री कृष्ण और उनके भक्त अर्जुन के बीच हुए वार्तालाप का उल्लेख किया है।
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि कलियुग के अंत में संसारभर में रहस्यमयी और भयंकर बीमारियाँ फैलेंगी, जो वैद्यों और डॉक्टरों को भी भ्रमित कर देंगी। इन रोगों पर कोई औषधि प्रभाव नहीं दिखा पाएगी। भगवान बताते हैं कि चेचक, कफ और पित्त विकार बड़े स्तर पर फैलेंगे। इसके साथ ही मिर्गी, ग्लूकोमा, पीलिया, अज्ञात बुखार, मधुमेह और त्वचा रोग जैसी अनेक बीमारियाँ भी असंख्य लोगों को अपनी चपेट में ले लेंगी।
आज पूरी दुनिया में तरह-तरह की बीमारियों ने अपना भयावह प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। कोरोना वायरस महामारी, जो एक नई और अभूतपूर्व बीमारी रही, ने पहले ही वैश्विक स्तर पर भय और विनाश फैलाया है।
“सत्य शांति दया क्षमारे जीउं प्राणि रहिबे,
रोग कबलारा केबे हिं सेमने न पडिबे।”
संत अच्युतानंद दास जी ने उपरोक्त पंक्तियों में स्पष्ट किया है कि जो लोग सत्य, प्रेम, दया, क्षमा और शांति जैसे धर्ममूल्यों को अपने जीवन में अपनाते हैं, वे इन भयानक बीमारियों की चपेट में नहीं आते। भगवद् भक्ति और सद्गुणों से युक्त जीवन ही इन आपदाओं से रक्षा का सच्चा मार्ग है।
संत अच्युतानंद दास की शिक्षाएँ
संत अच्युतानंद दास जी की शिक्षाओं को पूरी तरह समझना और उनसे जीवन में सीख लेना इतना गूढ़ है कि एक जीवन भी इसके लिए पर्याप्त नहीं है। अपनी दिव्य रचना भविष्य मालिका में उन्होंने अपने समय से लेकर आने वाले सत्ययुग तक की घटनाओं की जो सटीक भविष्यवाणियाँ की हैं, वे स्वयं भगवान की आज्ञा से लिखी गई थीं।
इस प्रकार, महान संत अच्युतानंद दास जी द्वारा रचित मालिका ग्रंथ दिव्य सत्य हैं, जिन्हें समय आने पर अवश्य प्रकट होना है। ये वचन मानवता के लिए मार्गदर्शक हैं, जो हमें अपनी आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने, पवित्रता में शरण लेने और आने वाली आपदाओं से प्रभु की दिव्य सुरक्षा प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं।
क्या पालन करें
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प्रतिदिन श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ करें
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त्रिसंध्या पाठ (सुबह, दोपहर और शाम को प्रार्थना)
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"माधव" नाम का निरंतर जप ही एकमात्र उपाय है।