क्या सभी जीवों का भविष्य पहले से लिख दिया जाता है?

देवता, असुर, मनुष्य अथवा और कोई भी प्राणी अपने, पराये अथवा दोनों के लिये जो प्रारब्ध का विधान है, उसे मिटा नहीं सकता।
कर्मानुबंधिनी मनुष्यलोके।- भगवद् गीता (15.2)
मनुष्य लोग कर्म बंधन के अधीन है।
मनुष्य का भविष्य उसके वर्तमान तथा पूर्व जन्म के कर्म के आधार पर निर्धारित होता है।
कोटी पुण्य उदय होने पर जीव को मनुष्य योनि प्राप्त होती है। मनुष्य को पूर्व जन्म के कर्म के अनुसार उच्च, साधारण अथवा निम्न कुल में जन्म मिलता है।
मनुष्य योनि में किये गए कर्म के माध्यम से जीव की गति निर्धारित होती है, अर्थात जीव को उच्च तथा निम्न योनियों में भटकना पड़ता है।
84 लाख योनियों में से केवल मनुष्य योनि ही कर्म योनि है, बाकी सभी जीव भोग योनि के अंतर्गत आते हैं।
लेकिन केवल मनुष्य योनि में ही जीव के पास कर्म के द्वारा भविष्य निर्धारित करने की शक्ति होती है।
त्रिकाल संध्या, भागवत पठन तथा नाम भजन के माध्यम से मनुष्य अशुभ प्रारब्ध को भी शुभ में परिवर्तित कर सकते हैं और परम गति को भी प्राप्त कर सकते हैं।