कलियुग अंत के संकेत के विषय में जगन्नाथ संस्कृति एवं भविष्य मलिक में क्या वर्णन है? तथा जगन्नाथ मंदिर पुरी से युग अंत के क्या संकेत दिखाई देते हैं?

महात्मा पंचसखाओं ने भविष्य मालिका की रचना भगवान निराकार के निर्देश से की थी। भविष्य मालिका में मुख्य रूप से कलियुग के पतन के विषय में सामाजिक, भौतिक और भौगोलिक परिवर्तनों के लक्षणों का वर्णन किया गया है। शास्त्रों में उल्लेख के अतिरिक्त श्री जगन्नाथजी के मुख्य क्षेत्र को आदि वैकुंठ (मर्त्य वैकुंठ) बताया गया है। 5,000 वर्ष के कलियुग के बाद पंचसखाओं ने भक्तों के मन से संशय को दूर करने के लिए बताया कि भगवान की इच्छा के अनुसार श्री जगन्नाथजी के नीलाचल क्षेत्र से विभिन्न संकेत प्रकट होंगे जिनसे भक्तों को कलियुग की आयु के अंत और भगवान कल्कि के अवतरण के बारे में पूरी तरह से पता चल जाएगा। ये सारे तथ्य नीचे दिए गए गीत से हम समझ सकते हैं -
दिव्य सिंह अंके बाबू सरब देखिबु,
छाड़ि चका गलु बोली निश्चय जाणिबू
नर बालुत रुपरे आम्भे जनमिबू।गुप्त ज्ञान - अच्युतानंद दास
महात्मा अच्युतानंदजी ने उपरोक्त श्लोक में महाप्रभु श्री जगन्नाथ के प्रथम सेवक और सनातन धर्म के ठाकुर राजा (चौथे दिव्य सिंह देव) के विषय में वर्णन किया है। महापुरुष ने इसका भी उल्लेख किया कि जगन्नाथ के क्षेत्र में राजा इंद्रद्युम्न की परंपरा के अनुसार अलग-अलग समय में अलग-अलग राजा जगन्नाथ के क्षेत्र के प्रभारी थे। जब चौथे दिव्य सिंह देव कार्यभार संभालेंगे, तो 5000 साल बीत चुके होंगे। इससे महापुरुष अच्युतानन्द ने दो बातें सिद्ध कीं- एक ओर तो चौथे दिव्य सिंह देव राजा के रूप में पदभार संभालेंगे और दूसरी बात यह है कि
कलियुग के 5,000 वर्ष
पहले ही बीत चुके हैं। (अभी कलियुग का 5125वां वर्ष चल रहा है।)
महात्मा अच्युतानंद ने मालिका में लिखा कि जब चौथे दिव्य सिंह देव सत्ता में होंगे (जो आज हैं) तो वही कलियुग के अंत का प्रमाण होगा। पुनः महापुरुष अच्युतानंदजी ने उपरोक्त पंक्तियों में समझाया कि जब चतुर्थ दिव्य सिंह देव श्रीक्षेत्र में शासन करेंगे तो भगवान जगन्नाथ कल्कि अवतार ग्रहण कर मानव शरीर धारण कर साकार रूप में जन्म लेंगे और धर्म की संस्थापना का कार्य करेंगे।
महापुरुष अच्युतानंद जी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि चौथे दिव्य सिंह देव के समय में
कलियुग
पूरा हो जाएगा और भगवान
जगन्नाथ को कल्कि
के रूप में एक बालक होकर जन्म लेना होगा।
अच्युतानंदजी ने अपने ग्रंथ ‘अष्ट गुजरी’ में समझाया-
पूर्व भानु अबा पश्चिमें जिब अच्युत बचन आन नोहिब।
पर्वत शिखरे फुटिब कईं अच्युत बचन मिथ्या नुंहइ।
ठु ल सुन्यकु मु करिण आस ठिके भणिले श्री अच्युत दास।
अर्थात, अच्युतानंदजी मालिका की पवित्रता और सच्चाई की घोषणा कर भक्तों के मन में भक्ति और विश्वास को सजीव करते हुए कहते हैं कि सूरज पश्चिम दिशा में उदय हो सकता है और पर्वत की चोटी पर कमल खिल सकता है, लेकिन मेरे द्वारा लिखी वाणी कभी गलत सिद्ध नहीं होगी......