वायु पुराण में चारों युगों की आयु कितनी बताई गई है?

यथा वेदश्चतुष्पादश्चतुष्पादं तथा युगम् ।
यथा युगं चतुष्पादं विधात्रा विहितं स्वयम् ॥
चतुष्पादं पुराणं तु ब्रह्मणा विहितं पुरा ॥- वायु पुराण (अध्याय 32.67)
जिस प्रकार भगवान ने वेदों को चतुष्पाद बनाया है उसी प्रकार ब्रह्माजी ने भी प्रत्येक युग को चार पादों में विभक्त किया है।
इन चार पादों के नाम इस प्रकार हैं-
1- प्रक्रिया पाद
2- अनुषंग पाद
3- उपोद्घात पाद
4- संहार पाद
और सत्ययुग एक पाद, त्रेतायुग दो पाद, द्वापरयुग तीन पाद और कलियुग चार पाद का भोग करता है।
इन श्लोक में चारों युगों की आयु 12,000 मानव वर्ष बतलाई गई है।
एक भी श्लोक में ‘दिव्य’ शब्द का प्रयोग नहीं, अपितु मानव वर्ष का प्रयोग हुआ है। अतः यह स्पष्ट होता है कि समय के साथ सनातन धर्मग्रंथों में रहस्यमय बदलाव किए गए हैं।
वायु पुराण (अध्याय 32), मनुस्मृति
चत्वार्याहुः सहस्त्राणि वर्षाणां च कृतं युगम् ।
तस्य तावच्छती सन्ध्या सन्ध्यांशश्च तथा विधः ॥ 58
कृते वै प्रक्रियापादश्वतुःसाहस्र उच्यते ।
तस्माच्चतुःशतं संध्या संध्यांशश्च तथाविधः॥59
सत्ययुग 4,000 मानव वर्ष का होता है । उसकी ‘सन्ध्या’ 400 वर्षों की होती है और ‘सन्ध्यांश’ 400 वर्षों का होता है । इस प्रकार सत्ययुग 4,800 वर्षों का और उसका एक पाद अर्थात चतुर्थ भाग 1,000 का होता है। 1,200 सौ वर्ष की आयु सत्ययुग की होती है।
त्रेता त्रीणि सहस्त्राणि, संख्यया मुनिभिः सह ।
तस्यापि त्रिशती सन्ध्या सन्ध्यां शस्त्रिशतः स्मृतः ॥ 60
अनुषङ्गपादस्त्रेतायास्त्रिसाहस्रस्तु संख्यया ।
त्रेतायुग 3,000 मानव वर्ष का होता है और उसकी संध्या के 300 वर्ष तथा सन्ध्यांश के 300 वर्ष मिलाकर 3,600 मानव वर्ष की आयु त्रेतायुग की होती है । यह त्रेतायुग दो भाग को भोगता है, एक प्रक्रिया पाद और दूसरा अनुषंग पाद, उन दोनों पाद के वर्ष और उस हिसाब से संध्या तथा संध्यांश के वर्ष मिलाकर 2,400 वर्षों की आयु त्रेतायुग भोगता है।
द्वापरे हे सहस्रे तु वर्षाणां संप्रकीर्तितम् ॥61
तस्यापि द्विशती संध्या सन्ध्यांशो द्विशतस्तथा ।
उपोदघातस्तृतीयस्तु द्वापरे पाद उच्यते ॥ 62
द्वापरयुग 2,000 वर्षों का बताया जाता है, 200 वर्ष संध्या के तथा 200 वर्ष संध्यांश के मिलाकर 2,400 वर्ष बताए गए हैं । लेकिन यह द्वापरयुग तीन पाद का समय भोगता है। एक प्रक्रिया पाद, दूसरा अनुषंग पाद और तीसरा उपोद्घात पाद - इन तीनों पाद के वर्ष और उस हिसाब से संध्या तथा संध्यांश के 300-300 वर्ष मिलाकर 3,600 वर्ष द्वापरयुग की आयु होती है ।
कलि वर्ष सहस्रन्तु प्राहुः
संख्याविदो जना:।
तस्यापि शतिका संध्या
सन्ध्यांशः शतमेव च ॥63
संहार पादः संख्याश्चतुर्थो
वै: कलौ युगे ।
ससंध्यानि सहांशानि चत्वारि तु युगानि वै ॥ 64
कलियुग हजार वर्षों का है और उसकी संधि 100 वर्षों तथा संध्यांश 100 वर्षों का है, इस प्रकार 1200 वर्ष होते हैं, परन्तु कलियुग चार पाद के समय को भोगता है, अर्थात एक प्रक्रिया पाद दूसरा अनुषंग पाद, तीसरा उपोद्घात पाद और चौथा संहार पाद, इस प्रकार चार पाद के 4,000 तथा उसके अनुसार संध्या तथा संध्यांश के 400, 400 वर्ष मिलाकर 4,800 वर्षों की आयु कलियुग भोगता है ।
एतद्द्वादशसाहस्र चतुर्युगमिति स्मृतम् ।
एवं पादैः सहस्राणि श्लोकानां पञ्च पञ्च च ॥ 65
संध्यासध्यांशकैरेव द्वे सहस्र तथाऽपरे ।
एवं द्वादशसाहस्र पुराणं कवयो विदुः ॥66
संध्या और संध्यांश के साथ चारों युगों के 12000 वर्ष कहे गए हैं। इन सभी युग पादों का योग 10000 वर्षों का है और संध्या तथा संध्यांश 2000 वर्ष के हैं। इस प्रकार युग पादों की कुल अवधि 12000 वर्षों की कही गयी है।