दुर्गा माधव स्तुति क्या है?

दुर्गा माधव स्तुति :-
जय हे दुर्गा माधव कृपामय कृपामयी
दुर्गान्कु सेबी माधव होइले मो दीअं साईं।
परम कृपामयी जगतजननी माँ दुर्गा और परम कृपामय माधव का जय हो। जिन दुर्गा की सेवा करके माधव मेरे प्रभु बने हैं, उनकी जय हो।
बहू रुपे जय दुर्गे, ब्यापी अछु सर्ब ठाबे
रमा उमा बाणी राधा तो छड़ा अन्य के नाहिं।
है देवी दुर्गा ! आप अनेक रूप से चारों और व्याप्त है। रमा, उमा, बाणी, राधा - ये सब आपके ही रूप हैं। आपको छोड कर संसार में अन्य कोई नहीं है।
मदन मोहन रुपे ब्यापी अछु सर्व ठाबे
मोहन चित्त मोहिलू श्री सर्व मंगला तुही।
आप मदन मोहन के रूप में चारों ओर व्याप्त हो। हे सर्वमंगला ! मोहन के चित्त को चुराने वाली आप ही हो।
धर्म संस्थापने जन्म यदी हवन्ति नारायण
दुर्गान्कु छाड़ी माधव खेलिबार शक्ति काहिं।
जब कभी धर्म संस्थापना के लिए नारायण का जन्म होता है, तो देवी दुर्गा को छोड़ कर उनमें खेलने की शक्ति कहां होती है।
माधबन्क खेल पाईं देह धरू महामायी
माधवन्कु पति पुत्र रुपे खेलाउछु तुही।
हे महामायी ! माधव के खेल के लिए ही तुम शरीर धारण करती हो। कभी पति के रूप में, तो कभी पुत्र के रूप में तुम माधव को खेलने में सहायक होती हो।
माधवन्कु दुर्गा कोले जेहूं देखे बेनी डोले
ताहार भाग्यर कथा ब्रह्मा शिबे न जोगाई।
माधव को दुर्गा के गोद में खेलता हुआ जो अपने दोनो आंखो से देखता है, उसका भाग्य का वर्णन ब्रम्हा और शिव भी नहीं कर सकते।
जय दुर्गति नाशिनी अभिराम र जननी
शुभागमन करंतू माधवन्कु कोले नेई।
है दुर्गति नाशिनी ! है अभिराम के जननी ! मेरी यह प्रार्थना है की माधव को गोद में ले कर इस धरा पर शुभ आगमन करें।