कलियुग के अंत के लक्षणों के विषय में विभिन्न सनातन धर्मग्रंथों में क्या वर्णन किया गया है ?

- महाभारत वन पर्व (188. 29-64) (190. 1-88)
- श्रीमद् भागवत महापुराण (12.2, 1-16) (12.3, 25-50)
- वायु पुराण (58. 48-72)
- श्री हरिवंश पुराण भविष्य पर्व (अध्याय 3,4)
- श्री विष्णु पुराण षष्ठ अंश (अध्याय 1)
- रामचरितमानस उत्तर कांड (पेज 999- 1004)
- वाल्मीकि रामायण, रामायण माहात्म्य (1. 7-14)
कलियुग के अंत के लक्षण के विषय में उपर्युक्त धर्म ग्रंथों में जो वर्णन किया गया है वह इस प्रकार है -
कलियुग अंत के समय मनुष्य मिथ्यवादी हो जाएंगे।
यज्ञ, दान, व्रत, तप मुख्य विधि से न होकर गोंढ विधि से नाम मात्र होने लगेंगे।
लोग वर्णाश्रम धर्म के अनुसार कर्म नहीं करेंगे।
ब्राह्मण शूद्रों के कर्म करेंगे जबकि शूद्र वैश्यों और क्षत्रियों के कर्म से जीविका उपार्जन करेंगे।
कलियुग के अंतिम भाग में ब्राह्मण यज्ञ, स्वाध्याय एवं दंड का त्याग कर देंगे, मांस-मछली और अभक्ष्य भक्षण करेंगे; जप, तप से दूर भागेंगे।
राजा चोर तथा प्रजा का शोषण करने वाले होंगे, छल से शासन करने वाले, पापी तथा असत्यवादी होंगे और जनता पर अनेक कर थोपेंगे।
मनुष्य नाटे कद के होंगे और उनमें शारीरिक शक्ति बहुत कम हो जाएगी।
ज्ञान न होने पर भी व्यर्थ ही ब्रह्मज्ञान की बातें कहेंगे और अभ्यक्ष भक्षणकर वेद पढ़ेंगे।
मनुष्य कामवासना में संलग्न होंगे तथा एक से अधिक स्त्रियों से संबंध बनाएंगे।
स्त्रियां भी नाटे कद की होंगी तथा पति को छोड़ परपुरुष का गमन करेंगी। स्त्रियां वेश्यावृत्ति से जीवन यापन करेंगी।
गायें बहुत कम दूध देंगी तथा उसमें मिठास नहीं होगी।
अन्न और फल में भी रस नहीं रहेगा। ब्राह्मण मदिरापान करेंगे तथा बहुत से मनुष्य मदिरापान जुआ और अभक्ष्य भक्षण करेंगे।
कलियुग के अंत में वेशधारी साधुओं की संख्या बढ़ जाएगी। वे अनेक पंथ-पाखंडों से लोगों को भ्रमित कर उन्हें लूटेंगे और ऐशोआराम में जीवन यापन करेंगे।
लोग थोड़े-से धन के लिए उन्मत्त होकर अपने ही सगे संबंधियों की हत्या करेंगे।
कलियुग के अंत में 7-8 वर्ष की स्त्रियां गर्भधारण करेंगी, 10 से 12 वर्ष के पुरुष भी पुत्र उत्पन्न करेंगे।
16 वर्ष की आयु में मनुष्य के बाल पक जाएंगे भ्रूणहत्या, जीवहत्या, गौहत्या, चोरी, डकैती हर जगह फैल जाएगी तथा मनुष्य की औसत आयु 25 से 30 वर्ष रह जाएगी।
सूर्यदेव की रश्मि बहुत प्रखर हो जाएगी, कभी सूखा पड़ेगा, कभी अचानक बरसात होगी, कभी बिना वर्षा ऋतु के बाढ़ आएगी, कोई भी ऋतु अपना धर्म पालन नहीं करेगी।
मनुष्य केवल धन अर्जित करने और कुटुंब पालन में ही संलग्न रहेंगे, लोग थोड़े-से धन का अहंकार करेंगे, इसी प्रकार और भी बहुत-से लक्षण जो कलियुग के अंत के बारे में विभिन्न धर्मग्रंथों में बताए गए हैं, वे सभी आज पूरे विश्व में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं।
पर किसी भी धर्म या सनातन धर्मग्रंथों में यह कहीं नहीं लिखा है कि कलियुग के अंत में मनुष्य चने अथवा बैंगन के पेड़ पर चढ़ेंगे, 7 से 8 वर्ष की स्त्री नानी बनेंगी और कहीं भी भागवत कथा नहीं होगी - ये सब बातें शास्त्र-सम्मत नहीं हैं। ये केवल भ्रामक बातें हैं।
जब देवर्षि नारद भक्ति माता से संवाद कर रहे थे उस समय उन्होंने बताया कि इस घोर कलियुग में सभी सनातन तीर्थ स्थल विधर्मियों के कब्जे में है। और कहीं पर भी भागवत का पाठ नहीं हो रहा था।
आज के धर्मगुरु जिस घोर कलि काल की बात करते हैं उस विषय में देवर्षि नारद पहले ही श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम अध्याय - भक्ति नारद संवाद में वर्णन कर चुके हैं।