मुक्ति क्या है मुक्ति के बाद जीव का क्या होता है?

मुक्ति अथवा परम गति का अर्थ है जीव चक्र बंधन से मुक्त होकर एक अमर शरीर को प्राप्त करना।
प्रत्येक जीव 84 लाख योनि में भटकते हुए कभी मनुष्य, कभी पशु-पक्षी, कभी कीट, कभी जलचर, कभी छोटे-छोटे जीव आदि योनियों में जन्म लेते हैं।
मुक्ति प्राप्त करने के लिए केवल मनुष्य योनि ही एकमात्र योनि है, अन्य किसी भी योनियों में मुक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती है।
जीव को मनुष्य जन्म केवल भगवत भक्ति करके मुक्ति प्राप्त करने के लिए ही मिला है।
भगवत भक्ति ही एकमात्र सरल मार्ग है जिस मार्ग में चलकर मनुष्य को परम गति (बैकुंठ लोक) प्राप्त हो सकता है।
जब जीव को मुक्ति मिलती है तो मृत्यु के समय भगवान महाविष्णु के पार्षद आकर मुक्ति प्राप्त जीव को सोने के विमान में बिठाकर अमर लोक (बैकुंठ लोक) की यात्रा पर ले जाते हैं।
जहां मनुष्य को एक दिव्य शरीर की प्राप्ति होती है। जिसे अमर शरीर भी कहते हैं। जिसका न तो कभी क्षय होता है, ना बुढ़ापा होता है, ना ही भूख लगती है, ना प्यास लगती है, ना दुख होता है, ना रोग होता है, जहां मनुष्य हमेशा नौजवान ही रहता है।
जहां मनुष्य हमेशा भगवान श्री कृष्ण, माँ राधा रानी तथा उनके पार्षदों के साथ आनंद ही आनंद में रहता है। उस दिव्य शरीर का ब्रह्म प्रलय के समय भी कभी क्षय नहीं होता है।