भगवान का नाम जप करना क्यों आवश्यक है?

ईशोऽहं सर्वजगतां नाम्नां विष्णोर्हि जापकः।
सत्यं सत्यं वदाम्येव हरेर्नान्या गतिर्नृणाम्॥
भगवान शंकर माता पार्वती को कहते हैं :-
सम्पूर्ण जगत् का स्वामी होने पर भी मैं विष्णु भगवान् के नाम का ही जप करता हूँ। मैं तुमसे सत्य-सत्य कहता हूँ, भगवान् को छोड़कर जीवों के लिये अन्य कर्मकाण्ड आदि कोई भी गति नहीं है।
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति होको महान् गुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं व्रजेत्॥- श्रीमद् भागवत महापुराण (12.3.51)
परीक्षित् ! यों तो कलियुग दोषों का खजाना है, परन्तु इसमें एक बहुत बड़ा गुण है। वह गुण यही है ही है कि कलियुग में केवल भगवान् श्री कृष्ण का संकीर्तन करने मात्र से ही सारी आसक्तियाँ छूट जाती हैं और परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है।
कृते यद् ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखैः।
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात्॥- श्रीमद् भागवत महापुराण (12.3.52)
सत्ययुग में भगवान् का ध्यान करने से, त्रेता में बड़े-बड़े यज्ञों के द्वारा उनकी आराधना करने से और द्वापर में विधि-पूर्वक उनकी पूजा-सेवा से जो फल मिलता है, वह कलियुग में केवल भगवन्नाम का कीर्तन करने से ही प्राप्त हो जाता है।