भगवान कल्कि आ गए हैं तो गुप्त में क्यों है?

जब भी भगवान मनुष्य शरीर धारण कर धर्म संस्थापना के लिए धरा धाम पर आते हैं, तब इस बात का पता केवल कुछ चंद भक्तों को ही लग पाता है।
ये वह भक्त होते हैं जो पिछले युगों में भी भगवान के साथ धर्म संस्थापना में सानिध्य पा चुके होते हैं।
अर्थात भगवान के अति करीबी भक्त ही भगवत कृपा से भगवान की अचिंत्य लीला को समझ पाने में समर्थ होते हैं।
अन्य किसी भी व्यक्ति को बिना सुदृढ़ भक्ति भाव के भगवान का पता नहीं चल सकता है।
क्योंकि भगवान को इंद्रिय विषय से जाना या समझा नहीं जा सकता है । भगवान को जानने के लिए केवल भक्ति ही एकमात्र सरल मार्ग है।
द्वापर युग में भी जब भगवान श्री कृष्ण गोप गोपालों के साथ वृंदावन में लीला विहार कर रहे थे तो स्वयं ब्रह्मा जी भी उनके उस लीला विग्रह को समझ पाने में असमर्थ हो गए थे, इंद्रदेव भी भगवान के उस लीला विग्रह को नहीं समझ सके थे।
कलियुग के इस घोर कलि काल में साधारण मनुष्य इतनी आसानी से भगवान की लीला को कैसे समझ सकते हैं।
भगवान की लीला को समझने के लिए समर्पण भाव तथा निष्काम भक्ति नितांत आवश्यक है । तर्क वितर्क से भगवान के विषय का बिंदु मात्र भी पता नहीं पाया जा सकता है।
श्रीमद् भागवत महापुराण (1.1.20)
भगवान् श्रीकृष्ण अपने को छिपाये हुए थे, लोगों के सामने ऐसी चेष्टा करते थे मानो कोई मनुष्य हों। परन्तु उन्होंने बलराम जी के साथ ऐसी लीलाएँ भी की हैं, ऐसा पराक्रम भी प्रकट किया है, जो मनुष्य नहीं कर सकते।
श्रीमद् भागवत महापुराण (1.3.29)
भगवान् के दिव्य जन्मों की यह कथा अत्यन्त गोपनीय - रहस्यमयी है; जो मनुष्य एकाग्रचित्त से नियम पूर्वक सायंकाल और प्रातःकाल प्रेम से इसका पाठ करता है, वह सब दुःखों से छूट जाता है।
श्रीमद् भागवत महापुराण (1.3.35)
वास्तव में जिनके जन्म नहीं हैं और कर्म भी नहीं हैं, उन हृदयेश्वर भगवान् के अप्राकृत जन्म और कर्मों का तत्त्व ज्ञानी लोग इसी प्रकार वर्णन करते हैं; क्योंकि उनके जन्म और कर्म वेदों के अत्यन्त गोपनीय रहस्य हैं।
श्रीमद् भागवत महापुराण (1.9.16)
ये कालरूप श्रीकृष्ण कब क्या करना चाहते हैं, इस बात को कभी कोई नहीं जानता। बड़े-बड़े ज्ञानी भी इसे जानने की इच्छा करके मोहित हो जाते हैं।
श्रीमद् भागवत महापुराण (1.9.18-20)
ये श्रीकृष्ण साक्षात् भगवान् हैं। ये सबके आदिकारण और परम पुरुष नारायण हैं। अपनी माया से लोगों को मोहित करते हुए ये यदुवंशियों में छिपकर लीला कर रहे हैं ।।18।।
इनका प्रभाव अत्यन्त गूढ़ एवं रहस्यमय है। युधिष्ठिर ! उसे भगवान् शंकर, देवर्षि नारद और स्वयं भगवान् कपिल ही जानते हैं ।।19।।
जिन्हें तुम अपना ममेरा भाई, प्रिय मित्र और सबसे बड़ा हितू मानते हो तथा जिन्हें तुमने प्रेमवश अपना मन्त्री, दूत और सारथी तक बनाने में संकोच नहीं किया है, वे स्वयं परमात्मा हैं ।।20।।
श्रीमद् भागवत महापुराण (7.9.38)
पुरुषोत्तम ! इस प्रकार आप मनुष्य, पशु-पक्षी, ऋषि, देवता और मत्स्य आदि अवतार लेकर लोकों का पालन तथा विश्व के द्रोहियों का संहार करते हैं। इन अवतारों के द्वारा आप प्रत्येक युग में उसके धर्मों की रक्षा करते हैं। कलियुग में आप छिपकर गुप्त रूप से ही रहते हैं, इसीलिये आपका एक नाम 'त्रियुग' भी है।