
त्रिसंध्या के दशावतार स्तोत्रम में, आठवें अवतार के रूप में भगवान कृष्ण के स्थान पर भगवान अनंत का नाम और स्तुति दी गई है, ऐसा क्यों? भगवान श्री कृष्ण को क्यों नहीं स्थान दिया गया, कृपया बताएं?

भगवान श्री कृष्ण स्वयं परम् ब्रह्म परमात्मा हैं।
श्रीमद् भागवत महापुराण, महाभारत, और भगवत गीता आदि ग्रंथों में श्री कृष्ण को केवल अवतार नहीं बल्कि “परम् ब्रह्म पुरुषोत्तम भगवान” अर्थात् स्वयं भगवान के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्ध।
र्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
- भगवतगीता (4.8)
अर्थात् - सत्पुरुषों की रक्षा करने के लिए, दुष्कर्म करने वालों दुष्टों के विनाश के लिए और धर्म की पुनः स्थापना करने के लिए मैं(श्री कृष्ण) प्रत्येक युग में जन्म लेता हूं।
जयदेव कवि द्वारा रचित “दशावतार स्तोत्रम” (गीत गोविंद से) में उन्होंने श्री कृष्ण को अवतार के रूप में न गिनकर, स्वयं भगवान (पूर्णावतार) के रूप में माना है। क्योंकि श्री कृष्ण तो स्वयं स्तोत्र के रचियता जयदेव के इष्टदेव भी है। इसलिए जयदेव ने श्री कृष्ण के स्थान पर बलराम या कभी - कभी अनंत शेष को आठवां अवतार के रूप में स्थान दिया है।
बलराम को कई परंपराओं में विष्णु के अवतारों में गिना जाता हैं, विशेषकर श्री कृष्ण की लीला में उनके सहायक रूप में,बलराम स्वयं अनंत शेष के अवतार माने जाते हैं।
कई भक्त कवियों और संतो ने भगवान कृष्ण को पूर्णतम अवतार के रूप में देखा है,जो सभी दिव्य गुणों और शक्तियों से परिपूर्ण हैं। इस कारणवश कुछ स्तोत्रों में उन्हें अन्य दशावतारों से अलग, सर्वोच्च स्थान प्रदान किया जाता हैं।उनका स्थान विशेष रूप से हृदय और भक्ती में होता है, न कि केवल एक श्रृंखलाबद्ध सूची में कुछ परंपराओं और ग्रंथों (विशेष कर दक्षिण भारत में) बलराम/अनंत को आठवां अवतार मानकर कृष्ण को अलग (पूर्णावतार या अवतारी) रूप में माना जाता है।