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सूर्य सिद्धांत, महाभारत तथा मनुस्मृति में दिव्य वर्ष, सौर वर्ष अथवा मनुष्य वर्ष के विषय में क्या लिखा है?
कृपया हिंदी में और सही लिखें, अधिकतम सीमा - 300 अक्षर
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Manish Vaswani Ji
9 months ago
ऐन्दवस्तिथिभिः तद्वत्सङ्क्रान्त्या सौर उच्यते।
मासैर्द्वादशभिर्वर्ष दिव्यं तदह उच्यते ॥- सूर्य सिद्धांत (1.13)
इस श्लोक के अनुसार स्पष्ट रूप से सिद्ध होता है कि सूर्य सिद्धांत में सौर वर्ष को ही दिव्य वर्ष माना गया है अन्य को नहीं।
तद्वादशसहस्राणि चतुर्युगमुदाहृतम् ।
सूर्याब्दसङ्ख्यया द्वित्रिसागरैरयुताहतैः॥
सन्ध्यासन्ध्यांशसहितं विज्ञेयं तच्चतुर्युगम् ।
कृतादीनां व्यवस्थेयं धर्मपादव्यवस्थया ॥- सूर्य सिद्धांत (1.15)
चारो युगों का मिला के सूर्य वर्ष के 12000 साल भोग होता है | संध्या और संध्यांश को मिला के चारो युगों की यही धार्मिक व्यवस्था है |
अहोरात्रे विभजते सूर्यो मानुषदैविके।
रात्रि: स्वप्नाय भूतानां चेष्टायै कर्मणामह:॥- मनुस्मृति (1.65)
अर्थात मनुष्य और देवताओं के दिन और रात्रि का विभाग सूर्य करता है। इस श्लोक से स्पष्ट होता है कि युग गणना मानव वर्षों (अर्थात सौर वर्षों) में की गई है न कि दिव्य वर्षों में।
ये ते रात्र्यहनी पूर्वं कीर्तिते जीवलौकिके ।
तयोः संख्याय वर्षाग्रं ब्राह्मे वक्ष्याम्यहः क्षपे ॥- महाभारत शांति पर्व, अध्याय 231,श्लोक 18
अर्थात् चतुर्युग की गणना मनुष्य लोक की संख्या के अनुसार की गई है।