🙏 जय श्री माधव 🙏

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भगवान शंकर तथा उनके पार्षद आदि अपवित्र क्यों लगते हैं?

कृपया हिंदी में और सही लिखें, अधिकतम सीमा - 300 अक्षर
130 Views 7 May 2025
@ShailajaTripathi Shailaja Tripathi Profile Pic on Bhavishya Malika Website
3 days ago

हमारी सनातन संस्कृति के अनुसर त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश को क्रमशः निर्माता, पालनकर्ता और संहारक का दयित्व प्राप्त है। 


देवताओं और असुरों के बीच होने वाले समुद्र मंथन के समय, समुद्र से प्रकट होने वाले विश को शिवजी ने संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए अपने कंठ में धारण किया था जिस वजह से उनको नीलकंठ कहा जाता है।

उन्हें अपनी अर्धांगिनी, माँ आदिशक्ति, से कई बार मानव जाति के कल्याण के लिए वियोग सहन करना पडा।

वैष्णवों में उनकी गिनती सबसे पहले की जाती है क्योंकि वो विष्णु जी की आराधना में हर क्षण लीन रहते हैं। 

वो अपने भक्तों से सहज में ही प्रसन्ना हो जाते हैं, इसलिए उनको भोलेनाथ भी कहते हैं। 

एक आत्मा जब मनुष्य का त्याग करती है तब उसको जलाने के बाद पंच-तत्व ही शेष रह जाते हैं जो धरती माता में पुन: समाहित हो जाती है। 
शस्त्रों में वर्णित है कि अग्नि और जल दोनों ही पवित्रता का प्रतीक है।

प्रजापति दक्ष ने भी शिवजी को देवताओ से भरी सभा में बहुत से अपशब्द कहे, अंत में उसका उन्हें भी प्रायश्चित करना पड़ा। 

शिवजी तो अपने मन, वचन और कर्म से सदा ही पवित्र हैं। वह पवित्रता सर्वश्रेष्ठ है और सर्वोपरी है। सत्य, रजस और तमस, शुद्ध और अशुध्द सभी परमात्मा की ही सृष्टि है इसलिए पवित्रा और अपवित्रता का आंकलन हम इंसानों का ना तो समर्थ है ना ही हम इसके हकदार है। पवित्रता को अपने मन, हृदय और कर्मों में लाना अनिवार्य है- ये भौतिक शरीर तो सदा ही अपवित्र था और हमेशा रहेगा चाहे आप इसे ऊपर से कितना ही पवित्र क्यों ना कर लें।  
जगन्नाथ संस्कृति, भविष्य मालिका एवं विभिन्न सनातन शास्त्रों के अनुसार कलियुग का अंत हो चुका है तथा 2032 से सत्ययुग की शुरुआत होगी।
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