🙏 जय श्री माधव 🙏

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श्रीमद् भागवत महापुराण पठन करना क्यों आवश्यक है? क्या रामचरितमानस, रामायण, भगवत गीता, शिव पुराण या अन्य धर्म ग्रंथों को पढ़ने से उद्धार नहीं होगा?

कृपया हिंदी में और सही लिखें, अधिकतम सीमा - 300 अक्षर

वेदों का विभाग, अष्टादस पुराण की रचना करने के बाद भी महर्षि वेदव्यास जी का मन कुछ उदास सा था।

देवर्षि नारद जी के पूछने पर महर्षि वेदव्यास जी ने अपना उदासी का कारण बतलाते हुए कहा कि हे देवर्षि नारद जी मैंने अनेकों ग्रंथों की रचना की अष्टादस पुराण, महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना करने के बाद भी मेरे मन में एक सवाल आता है!

कि कलियुग में मनुष्य की अल्प आयु होगी बुद्धि भी अल्प होगी, ऐसे में इतने ग्रंथों के लाखों श्लोक का सार तत्व कलियुग के मनुष्य कैसे समझ पाएंगे अर्थात वह भगवत् प्राप्ति के मार्ग में कैसे अग्रसर हो पाएंगे। इस घोर कलियुग में तो मुक्ति मिल पाना असंभव है।

इस पर देवर्षि नारद जी बोले आप एक ऐसे ग्रंथ की रचना करो जो कि भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से युक्त हो तथा भगवान श्री कृष्ण की मधुमयी लीलाओं से रसमय हो। जिसके श्रवण, पठन तथा मनन से कलियुग के कलिमुस से छूट कर जीव का उद्धार हो सके और कलियुग में मनुष्य मुक्ति प्राप्त कर सके।

इसी कारण कलियुग में मानव कल्याण के लिए वेदव्यास जी ने अति दुर्लभ श्रीमद् भागवत महापुराण शास्त्र की रचना की जिसमें भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य, तत्व को प्रमुखता दी गई है।

भगवान श्री कृष्ण अपने स्वधाम गमन से पहले उद्धव जी को यह बताते हैं कि मैं कलियुग में भागवत् के रूप में शाश्वत विद्यमान रहूंगा। तथा जो भी मनुष्य श्रीमद् भागवत् महापुराण शास्त्र का नित्य पठन करेंगे उन्हें रोग, दुःख तथा अकाल मृत्यु के भय से दूर कर बैकुंठ को ले लूंगा।

इसी कारण कलियुग में श्रीमद् भागवत महापुराण शास्त्र को अन्य सभी ग्रंथों से सर्वश्रेष्ठ और एकमात्र शीघ्र मुक्ति का साधन बताया गया है । यह ग्रंथ केवल कलि काल में मनुष्यों के लिए उपलब्ध है, यह कथा देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।

जब शुकदेव महामुनि राजा परीक्षित को यह देव दुर्लभ कथा का रसापान करा रहे थे तो उस समय देवता अमृत का कलश लेकर वहां आए। उन्होंने शुकदेव जी से प्रार्थना की हम महाराज परीक्षित को अमृत पान कराएंगे उसके बदले आप हमें भागवतामृत का दान दे दीजिए। उस समय शुकदेव जी ने देवताओं को अल्प ज्ञानी तथा इस परम गोपनीय शास्त्र का अनाधिकार समझकर उन्हें भागवत अमृत नहीं दिया।

प्रीतिः शौनक चित्ते ते ह्यतो वच्मि विचार्य च।
सर्वसिद्धान्तनिष्पन्नं संसारभयनाशनम्॥

सूत जी शौनकादि ऋषियों को कहते हैं तुम्हारे ह्रदय में भगवद प्रेम है। इसलिए मैं विचार करके संपूर्ण सिद्धांतों का निष्कर्ष सुनाता हूं जो की जन्म मृत्यु के भय का नाश कर देता है।

भक्त्योघवर्धनं यच्च कृष्णसंतोषहेतुकम्।
तदहं तेऽभिधास्यामि सावधानतया शृणु॥

जो भक्ति के प्रवाह को बढ़ाता है तथा भगवान श्री कृष्ण की प्रसन्नता का प्रमुख कारण है, मैं तुम्हें वह साधन बताता हूं सावधान होकर सुनो।

कालव्यालमुखग्रासत्रासनिर्णाशहेतवे।
श्रीमद्भागवतं शास्त्रं कलौ कीरेण भाषितम्॥

श्री शुकदेव महामुनि ने कलियुग में जीवों के काल रूपी सर्प के ग्रास के भय से‌‌ आत्यांतिक नाश करने के लिए श्रीमद् भागवत् महापुराण शास्त्र का प्रवचन किया है।

एतस्मादपरं किंचिन्मनः शुद्ध्यै न विद्यते।
जन्मान्तरे भवेत्पुण्यं तदा भागवतं लभेत्॥

मन की शुद्धि के लिए इससे बढ़कर कोई साधन नहीं है। जब जन्म-जन्मांतर के पुण्यों का उदय होता है तभी मनुष्य को भागवत शास्त्र की प्राप्ति होती है।

अतः सभी मानव समाज को उद्धार के लिए इस अति दुर्लभ परम भागवत शास्त्र का नित्य पठन करना अन्य शास्त्रों की तुलना में अति आवश्यक है।

जगन्नाथ संस्कृति, भविष्य मालिका एवं विभिन्न सनातन शास्त्रों के अनुसार कलियुग का अंत हो चुका है तथा 2032 से सत्ययुग की शुरुआत होगी।
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